Sunday, May 1, 2022

मैथिली कथा साहित्यक विकास

 
कथा साहित्यक, आधुनिक विद्या थिक । यद्यपि भारतीय वाड़मय मे कथा-साहित्य जन्म ऐतरेय ब्राह्मणक शुन: शेपक कथा सँ भए जाइत अछि जेकर विधिवत अगिला विकास थिक पंचतंत्र-कथा जकर प्रभाव आ प्रेरणा विश्व भरिक प्राचीन कथा साहित्य पर पड़ल अछि । किन्तु आधुनिक भारतीय कथाक प्रेरणा-भूमि यूरोप विशेषत: अंग्रेजी कथा-साहित्य रहल अछि सेहो निर्विवाद अछि ।

आधुनिक मैथिली कथा साहित्यक आरम्भ बीसम शताब्दीक प्रथम चरणमे मुख्यत: संस्कृ्त ओ बंग्ला तथा अंग्रेजीक विभिन्न कथा कृतिक छाया भावनुवाद सँ मानल जाइत अछि जाहिमे क्रमश: कालान्तर मे मौलिक कथाक बीजारोपनक प्रस्थान-बिन्दु परिलक्षित होमय लगैत अछि । डाँ जयकान्त मिश्र तथा डाँ दुर्गानाथ झा ‘श्रीश’ सँ भिन्न परवर्ती शोधक आधार पर डॉ. रामदेव झा मैथिलीक पहिल मौलिक कथा जनसीदन जीक 1917 मे लिखित ‘ताराक वैधव्य’केँ मानैत छथि । एहि प्रकारेँ ओ आधुनिक मैथिलीक मौलिक कथा-विकासक प्रस्थान-बिन्दुकेँ किछु पाछु लए जयबाक पक्षमे छथि जे सर्वथा समीचीन अछि । एहि तरहे आधुनिक मैथिली कथा-विकासक यात्रा बीसम शताब्दीक दोसर दशकक उत्तरार्द्ध सँ प्रारम्भ भए जाइत अछि जाहिमे 1930 ई क पश्चात तीव्रता सेहो अबैत अछि । पत्र-पत्रि‍काक प्रकाशनमे वृद्धि‍क संगहि कथाक विकास मे बेस प्रगति भेल । ई प्रगति परिमाण आओर परिणाम दुनू दृष्टि‍ए भेल ।

स्वाधीनतापूर्व केर मैथिली कथा आदर्श, भावुकता, करुणा, तथा सामान्यत: अविकसित शिल्पक घटना-प्रधान कथा-रचनाक कालखंड थिक जाहिमे उदेशात्मकताक स्वरक प्रमुखता रहैत छल । प्रारम्भिक‍ अनुवाद ओ आख्यान-आख्यायिकाक शिल्प-प्राकान्तर सँ बहराक जखन मैथिली-कथाक विकास यात्रा मौलिकता केर राजपथ पर आयल तँ 1940 ई0 धरि एकाध अपवादकेँ छोड़ि‍, समान्यत: अधि‍कांश कथाक पूर्वोक्तेँ स्थिति छल । अपवाद छल कुमार गंगानंद सिंहक ‘बिहाडि़’ नामक कथा जाहिमे आधुनिक कथा-शिल्पक अधिकांश विशेषता बीज-रूपमे वर्तमान अछि । सुखद आश्चर्य-एहि बातक अछि जे ओहि युगक ‘बिहाडि’ कथामे अगिला युगक यथार्थवादी युग-चेतना तथा परिवर्तित ग्रामीण परिवेश एवं विकसित शिल्पक कलात्मकता अछि ।

स्वाधीनता पूर्व केर मैथिली कथाकार आ कथा मे काली कुमार दासक ‘भीषण अन्याय’ हरिनन्दन ठाकुर सरोजक ‘कर्णफूल’ भूवन जीक ‘रौद छाया’, भीमेश्वर सिंहक ‘विसर्जन’, लक्ष्मीपति सिंहक ‘कबुलीवाला’ तथा सुमनजीक ‘वृहस्पतिक शेष’ आदि प्रमुख मानल गेल । एहि कालखंडक अन्य प्रमुख कथाकारमे छथि रमानन्द झा, श्री कृष्ण़ ठाकुर, कालीचरण झा, जगदीश मिश्र आदि । एहि युगक अधि‍कांश कथाक विषय छल विवाह आ वैवाहिक समस्या जाहिमे करूणा भावुकता तथा उपदेशात्मकता मूल रूप सँ रहैत छल । कथा-विकासक यात्रामे 1940 ई. क पछाति एकटा महत्वपूर्ण मोड़ उपस्थि भेल जखन प्रो. हरिमोहन झा, मनमोहन झा, किरण, उमानाथ झा, उपेन्द्र नाथ झा ‘व्यास’ आदि सन-सन कथाकार मैथिली कथा जगतमे प्रवेश कएलनि । यद्यपि एहि कथाकार लोकनिक अधि‍कांश कथाक विषय वस्तु, वैवाहिक समस्या आ भावुकता रहैत छल किन्तु कथा शिल्प अपेक्षाकृत विकसिक छल तथा घटना – प्रधान कथा होइतहुँ वातावरण निर्माण एवं चरित्रांकन मे एक प्रकार सँ संतुलन रहैत छल जकर विकास क्रमश: अगिला युगमे अधिक भेल । एहि कथाकार लोकनि मे प्रो. हरिमोहन झा अपन हास्य व्यंग्यक अद्भुत क्षमताक कारणे तथा मनमोहन झा अपन करूणा-सृष्टिक कारणे प्रसिद्ध भेलाह । प्रो. हरिमोहन झा अपन हास्य व्यंग्य लेखनक लेल मिथिलाक तत्कालीन अशिक्षा, अंध विश्वास, विरुपता ओ कुसंस्कारकेँ माध्यम बनाकेँ कथा साहित्य क रचना कएलनि‍ । ओहि मनोरंजनात्मक रचनाक कारणेँ मात्र मिथिले समाजमे नहि अपितु राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक रूपेँ लोकप्रि‍य भेलाह । एहि दृष्टि‍एँ ई विद्यापतिक पश्चात दोसर रचनाकार भेलाह जनिका करणे मैथिलीकेँ राष्ट्रीय अंतरराष्‍ट्रीय स्तर पर लोकप्रि‍यता भेटल आ प्रतिष्ठा भेटल । हास्य व्यंग्य सम्राट प्रो. हरिमोहन झाक कथा ‘कन्या जीवन’ आ पाँच पत्र नामक दुई गोट एहन कथा अछि जे अपन करूणा ओ मानवीय सम्वेदनाक संगहि मनोवैज्ञानिकताक कारणेँ अभिभूते नहि चकित कए दैत अछि । जे लेखकीय क्षमताक परिचायक थिक । स्वाधीनताक आसपास जे कथाकार लोकनि मैथिली कथा जगतमे प्रवेश कयलिन ताहिमे प्रमुख छथि राधाकृष्ण झा, डॉ शैलेन्द्र मोहन झा, ब्रज किशोर झा, राम कृष्ण झा किसुन, सुधांशु शेखर चौधरी आदि जनिका कथामे वास्तविक जीवनक यर्थाथ तथा कथा शिल्पक विकसित स्वरुप परिलक्षि‍त होमय लागल । स्व तंत्रनाथ झाक बाद जहिना जहिना विभिन्न पत्र-पत्रि‍काक प्रकाशनक सुविधा बढ़ल तहिना तहिना कथा विकासमे अभूतपूर्व प्रगति भेल तथा नवीन कथाकार लोकनिक मैथिली कथा जगत मे प्रवेश भेल । स्वाधीनताक पश्चात मैथिली कथा विकासमे आमूल परिवर्तन भेल । परिवर्तनक विषय विन्यास मे कथ्य ओ कथा-भंगिमा मे तथा मनोवैज्ञानिक विश्लेषण-पद्धति मे भेल । पुरान परम्पराकेँ तोड़ि‍ वैवाहिक समस्या, उपदेशात्मक स्वर तथा घटनाक चमत्कारकेँ लोप भेल आ ओकरा स्थान पर कथ्य–विषयक विस्तार भेल । आब कथा मे घटना गौण भेल तथा वातावरण-निर्माण एवं चरित्रांकनक विशेषता प्रधान भेल ।

स्वाधीनताक पश्चात समकालीन मैथिली कथा अपन कथ्य, कथन भंगिमा ओ शिल्पक-विधानक कारणेँ समकालीन भारतीय कथा-विकासक समकक्ष ठाढ़ अछि । ई समकक्षताक सामर्थ देबाक श्रेय जाइत अछि स्वाधीनताक पश्चात कथाकार लोकनिकेँ जाहिमे प्रमुख छथि ललित, राजमकल चौधरी, लिली रे, धूमकेतु, सोमदेव, धीरेन्द्र, हंसराज, रमानन्द रेणु, गोविन्द झा, रामदेव झा, प्रभास कुमार चौधरी, गंगेश गंजन, जीवकान्त, राजमोहन झा, मनमोहन झा, महाप्रकाश, सुभाष, गौरी मिश्र, साकेतानन्द, अशोक कुमार झा, प्रदीप बिहारी, विभूति आनन्द, विश्वनाथ झा, तारानान्दक वियोगी, केदार कानन आदि । कथा विकासक क्रम मे महिला कथा लेखिकाक कुल संख्या लगभग दू सय सँ बेसी होयत । जिनकर लगभग सात सय कथा अद्यवधि‍ उपलब्‍ध अछि एहि महिला कथा मे गौरी मिश्र, शेफालिका वर्मा, लिली रे, सुभद्रा सुहासिनी, श्यामा झा, चित्रलेखा देवी, नीरजा रेणु, सुभद्रा कुमारी, उषाकिरण खान, विभा रानी, शकुन्तला चौधरी, नीता झा आदि कथालेखिका कथाक रसास्वासदन मैथिली पाठककेँ करेलनि अछि । आशा अछि जे मैथिली कथाक विकास क्रम केँ समुन्नत करबाक लेल अधिकाधि‍क संख्यामे महिला कथाकार लोकनिक डेग आगाँ बढ़त आ मैथिली कथामे संवर्धन होयत ।

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